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कविता

गिरजाघर

मार्तिन हरिदत्त लछमन श्रीनिवासी

अनुवाद - पुष्पिता अवस्थी


मैं जानता हूँ कि
साथ में जुड़े हुए यह हाथ
मेरे माथे के विरुद्ध
आशीर्वाद है
तुम्‍हारे सामने
झुककर प्रणाम करते हैं
ओम यशु क्रीस्‍ट

और इस क्रुस में
अथाह संकेत है
मुझे मुक्‍त करने
मुझे स्‍वतंत्र करने में
अवांछित अँधेरे से
और मैं तुम्‍हारे
चरणों का चुंबन लेता हूँ
और रोते हुए कहता हूँ
ऊँ यशु क्रीस्‍ट

जब रोशनी लिखेगी
खिड़कियों पर विशिष्‍ट स्‍याही से
कुछ नाम
तब मेरी आँखें
प्रेम के आँसू के साथ
शहर में प्रवेश करेगी
मैं जानता हूँ तब वहाँ तुम होगे
और मैं जानता हूँ
कहाँ से आया हूँ मैं
तुम्‍हारे शिशु की तरह
अभिवादन करता हूँ मैं
प्रणाम, ओम, यशु क्रीस्‍ट प्रणाम

 


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